सबसे सुन्दर कर्म है, माँ-बाप की सेवा..
इससे नहीं बढ़कर, दुनिया में कोई पूजा..
पर ये विविधताओं की दुनिया है,
यहाँ विविध रंग दिखते हैं ..
कुछ दो कदम साथ चलते नहीं,
और कुछ तमाम उम्र,
माँ-बाप के नाम पर कुर्बान करते हैं..
पर "विश्वजीत" असलियत में अहमियत,
रिश्तों की वो ही समझते हैं,
जो हर किसीको साथ में ले करके चलते हैं..
Monday, October 3, 2011
Tuesday, September 30, 2008
"पैसा"
पैसा सुख का सार। सब पैसे का संसार॥
घरबार में, दो चार में, सरकार में, दरबार में,
बस पैसा ही पैसा॥
पैसे में ताकत पायी, पैसे बिनु आफत आयी।
पैसे की दुनिया सारी, पैसे की खींचा-तायी॥
बिनु पैसे के आदमी, चरखे की माल है।
पैसा नही है पास तो, ठन-ठन गोपाल है॥
विश्वजीत पैसे की बपती अंधेर है।
जिधर भी देखो पैसे का ही हेर-फेर है॥
घरबार में, दो चार में, सरकार में, दरबार में,
बस पैसा ही पैसा॥
पैसे में ताकत पायी, पैसे बिनु आफत आयी।
पैसे की दुनिया सारी, पैसे की खींचा-तायी॥
बिनु पैसे के आदमी, चरखे की माल है।
पैसा नही है पास तो, ठन-ठन गोपाल है॥
विश्वजीत पैसे की बपती अंधेर है।
जिधर भी देखो पैसे का ही हेर-फेर है॥
Saturday, September 27, 2008
"एक तिनका" (नाज़)
एक तिनका नाज़ तेरा दूर कर देगा।
आँख में यदि गिर जाए, तो छुभन ऐसी मचाये,
रोने और चिल्लाने को मजबूर कर देगा॥
जब मिले तुझको ये दंड, दूर हो तेरा घमंड।
बस तिनका पल में, गुरूर तेरा चूर कर देगा॥
अब इतनी सी समझ लिए, एक तिनका बहुत तेरे लिए।
ज्ञान दे अज्ञान तेरा दूर कर देगा॥
"विश्वजीत" ध्यान दे, अनुचित वाणी थाम दे।
नही तो भगवान् तुझे मूक कर देगा॥
दोज़ वर दा डेज़
जब याद तुम्हारी आती है, मिलने की चाह जगाती है।
बीते लम्हे ताज़ा होते, दिलमे उमंग छा जाती है॥
कितना बचपन, कितनी मस्ती, कितना पागलपन था उसमे।
वो समय सुहाना था प्यारा, अब कितनी उलझन हैं जीवन में॥
ना घ्रणा-द्वेष ना झूठ-कपट, निष्पाप वो था बचपन प्यारा।
वो बचपन मेरा लौटा दो, चाहे ले लो बाकी जीवन सारा॥
वो साथ तेरे लिखना-पढ़ना, वो शिक्षा का मन्दिर न्यारा।
याद "विशु" को आता है, वो साथ तेरा कितना प्यारा॥
Thursday, September 25, 2008
"चमन एक है, और फिजा एक है"
चमन एक है, और फिजा एक है।
गुलों में खुमार-ऐ-वफ़ा एक है॥
महकता चमन, झिलमिलाता गगन।
हवाओं का ये सिलसिला एक है॥
फर्मों की हद में तो सब हैं जुदा।
हकीकत में हर आइना एक है॥
में हिन्दु तू मुसलिम, ये सिख वो इसाई
पर उसकी नज़र में हर इंसा एक है॥
ज़मी एक है, और आसमां एक है।
इस सारे जहाँ का विधाता एक है॥
'विश्वजीत' गफ़लत में, क्यूँ तू है रहता।
उस विधाता का सबसे रिश्ता एक है॥
गुलों में खुमार-ऐ-वफ़ा एक है॥
महकता चमन, झिलमिलाता गगन।
हवाओं का ये सिलसिला एक है॥
फर्मों की हद में तो सब हैं जुदा।
हकीकत में हर आइना एक है॥
में हिन्दु तू मुसलिम, ये सिख वो इसाई
पर उसकी नज़र में हर इंसा एक है॥
ज़मी एक है, और आसमां एक है।
इस सारे जहाँ का विधाता एक है॥
'विश्वजीत' गफ़लत में, क्यूँ तू है रहता।
उस विधाता का सबसे रिश्ता एक है॥
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